बिहार के लिए बड़ी खुशखबरी! बालूशाही, तिलकुट और खुरमा को  मिल सकता है GI टैग

बिहार राज्य के लिए एक बड़ी खुशखबरी है. बिहार की लोकप्रिय मिठाई बालूशाही, तिलकुट और खुरमा को जल्द ही जीआई टैग मिलने की संभावना है. इसके लिए प्रारंभिक जांच के बाद आवेदन स्वीकार कर लिया गया है. वहीं हाजीपुर के प्रसिद्ध ‘चीनिया’ केला, नालंदा की मशहूर ‘बावन बूटी’  साड़ी और गया की ‘पत्थरकट्टी’ पत्थर कला को भी जीआई टैग देने की मांग मंजूर कर ली गई है.

नाबार्ड-बिहार के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार के अनुसार इन सभी उत्पादों के लिए जीआई टैग की मांग करने वाले आवेदनों की जीआई रजिस्ट्री ने महत्वपूर्ण जांच एवं निरीक्षण के बाद स्वीकार कर लिया है. बता दें कि खुरमा और तिलकुट न केवल देश बल्कि विदेशों में भी काफी पसंद किया जाता है. वहीं बालूशाही का भी देश भर में बहुत मांग है. 

क्या है जीआई (GI) टैग?

जीआई का मतलब है भौगोलिक संकेत (Geographical Indication). यह एक प्रतीक है जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है. जीआई टैग उत्पाद की विशेषता बताता है. जीआई टैग सिर्फ उन उत्पाद को दिया जाता है जो अपने क्षेत्र की विशेषता रखते हों या सिर्फ उसी क्षेत्र में पैदा होतेे हों या बनाए जाते हों. कोल्हापुरी चप्पल, कश्मीरी केसर, बनारसी साड़ी, तिरुपति लड्डू, दार्जिलिंग चाय, आदि को जीआई टैग मिला है. 

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जीआई टैग मिलने के फायदे

जीआई टैग की मदद से किसी भी उत्पाद को कानूनी संरक्षण मिलता है. इसका मतलब है कि बाजार मेें उसी नाम का दूसरा उत्पाद नहीं लाया जा सकता. साथ ही जीआई टैग मिलने से किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ती है. जीआई टैग के मिलने से किसी भी उत्पाद के अंतरराष्ट्रीय बाजार के द्वार भी खुल जाते हैं. यानी कि जीआई टैग के मिलने से उस जगह के लिए रोजगार व राजस्व में वृद्धि होती है. 

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बिहार के किन उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग? 

बात करें बिहार की तो यहां के मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, कतरनी चावल, शाही लिची, जर्दालू आम, मगही पान, सिलाव खाजा, मिथिला मखाना, आदि को जीआई टैग मिल चुका है. इसी के साथ अब बालूशाही, तिलकुट, खुरमा, चीनिया, केला, बावन बूटी  साड़ी और पत्थरकट्टी पत्थर कला को भी जीआई टैग देने की मांग मंजूर कर ली गई है. इन सभी उत्पादों को जीआई टैग मिलना बिहारवासियों के लिए गर्व की बात होगी.

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