Bihar: मधुबनी जिला की रहने वाली प्रिशा ने ‘मंगलाचरण’ की प्रस्तुति देकर मोह लिया दर्शकों का मन

यह कोई किंवदंती नहीं है बल्कि एक सच है कि पुरी (ओड़िशा) के जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है. प्रिशा नाम का अर्थ भी विपरीत स्थितियों में सामना करने की क्षमता होती है. आज हम आपको जिस प्रिशा लाभ के बारे में बताने जा रहे हैं वो एक 11 वर्ष की लड़की है जो ओडिसी नृत्य के सफ़र में कदम रखती हुई खुद के लिए एक राह बनाती जा रही है. प्रिशा बिहार के मधुबनी जिले से संबंध रखती हैं और एक शास्त्रीय नृत्यांगना हैं. प्रिशा अपने अन्य अर्थ “ईश्वर से मिली प्रतिभा” को साबित भी करती है. बता दें, 15 जून 2023 को पटना में  संगीत शिक्षायतन के कार्यक्रम का प्रारंभ प्रिशा ने जगन्नाथ देवता के ‘मंगलाचरण’ से किया. हिन्दू देवता विष्णु के पूर्ण अवतार कृष्ण का हीं एक रूप हैं जगन्नाथ! वे हिन्दू धर्म के सर्वोच्च देवता माने जाते हैं. 

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मंगलाचरण भारत में मंदिरों के नर्तकों द्वारा देवी-देवताओं की महिमा और गुणगान कर प्रदर्शन की एक प्रक्रिया है. नृत्य के प्रारंभ में प्रार्थना और अलौकिक अनुभूति का माध्यम है मंगलाचरण. शास्त्रीय नृत्य ओडिसी की अनूठी परंपरा में संस्कृत श्लोकों, पदों और मंत्रोच्चारों से शुभ कार्यो का आह्वान किया जाता है. इष्टदेव, गुरु और दर्शकों का अभिवादन किया जाता है. 

प्रिशा ने मंगलाचरण कर के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर लिया

15 जून के कार्यक्रम में प्रिशा ने ओडिसी नृत्य शैली में ईश्वरीय स्तुति और आराधना में डूबकर अपने समर्पण भाव से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. यह कहना कि नृत्यांगना के तौर पर उम्र कम है प्रिशा की, तो यह किंचित भी सच नहीं. एक नृत्यांगना के लिए समय के साथ परिपक्वता बढ़ती तो है पर इस छोटी सी उम्र ने तो ईश्वर को जैसे अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया हो. समय साक्षी है और हमसब दर्शक भी.

संगीत शिक्षायतन के एक कार्यक्रम के दौरान
बिहार यूथ कॉन्क्लेव कार्यक्रम के दौरान

शास्त्रीयता का आलिंगन कर ओडिसी नृत्य देवदासियों द्वारा मंदिरों में स्थापित

ओडिसी नृत्य शैली की बात की जाए तो ऐतिहासिक साक्ष्य बहुत कुछ कहतें हैं. इतिहास के पन्नें पलटें तो यह तथ्य उभरकर आता है कि ओडिसी नृत्य को देवदासियों ने हीं विशेषत: मंदिरों में आगे बढ़ाया. इसकी भाव-उत्पत्ति भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से भी हुई है. नौ रसों के भावों से ओतप्रोत यह नृत्य-शैली शास्त्रीयता का आलिंगन कर देवदासियों द्वारा हीं मंदिरों में स्थापित हुई और समय के साथ शाही संरक्षण मिलने पर नवीन रूपों को आत्मसात कर विकसित होती गई. 

ब्रहमचर्य का पालन करतीं देवदासियां ओडिसी नृत्य से धार्मिक कथाओं- किंवदंतियों का, जैसे वैष्णववाद में जगन्नाथ के रूप में विष्णु और जगन्नाथ त्रयी – जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को आराध्य के रूप में स्वीकार कर अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करतीं रहीं. कई अन्य पारंपरिक आराध्यदेवों का भी समावेश किया. कई पुरातात्विक साक्ष्यों में ऐसे शिलालेख मिलें हैं जहां ओडिसी नृत्य शैली में अनेकानेक देवों यथा शिव, सूर्य देव और कई धर्मों बौद्ध, जैन आदि का भी चित्रण है. 

इतनी छोटी उम्र के बच्चों में जब शास्त्रीय नृत्य के प्रति झुकाव और सीखने की अकूत लालसा दिखती है तो लगता है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर नई पीढ़ी के हाथों में सुरक्षित है. प्रिशा जैसे बच्चें और गुरूओं का सानिध्य निश्चित रूप से सुकून देते हैं और समाज को नव संदेश देते हैं. 

ओडिसी नृत्य शैली में आधुनिकता और प्रयोगात्मक तत्वों का समावेश

ओडिसी एक नृत्य-नाटिका शैली भी है. संगीत शिक्षायतन ने जैसे गुरूदेव टैगोर की पदावली पर नृत्य-नाटिका की रचना शास्त्रीय नृत्य कत्थक को आधार बनाकर प्रस्तुत किया वैसे हीं ओडिसी भी भारतीय परंपरा के मूल तत्वों को समाहित कर एक नई रचना को सामने लाती है. 

प्रत्येक नृत्य शैली में मंगलाचरण एक अंग है. यदि हम ओडिसी की भी बात करें तो कह सकते हैं कि परंपरा के साथ कलाकारों ने कई आधुनिक और प्रयोगात्मक तत्वों को नाट्य शैली में पिरोकर जो अभूतपूर्व रचनात्मक शैली विकसित की है वो आज के समय में अंगुलियों पर भी गिन नहीं सकते. इन शैलियों पर ऐतिहासिक साक्ष्यों जैसे कोणार्क, पुरी और उदयगिरि आदि गुफाओं और मंदिरों में नृत्य और संगीत के नक्काशियों के प्रभाव की भी झलक मिलती है. भारत में इस्लामिक आधिपत्य के दौरान ओडिसी नृत्य परंपरा का क्षय हुआ और ब्रिटिश राज में भी कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा.

वर्ष 1953 में भारतीय संगीत नाटक अकादमी ने ओडिसी को शास्त्रीय नृत्य शैली का दर्जा दिया 

जयदेव ने भी आधुनिक ओडिसी के स्वरूप को विकसित किया. आज के समय में बच्चों को प्रेरणा देने के लिए कई कलाकार और गुरू हैं. पंकज चरण दास को ओडिसी नृत्य का आदिगुरु माना जाता है. साथ हीं देबा प्रसाद दास, मोहन महापात्रा, मायाधर राउत केलुचरण महापात्रा आदि नाम अत्यंत सम्मान से लिया जाता है. 

संयुक्ता पाणिग्रही, सोनल मानसिंह, मिताली दास, काली चरण पटनायक, शेरोल लोदेन ( USA) आदि कलाकारों और साधकों ने प्राचीनतम और नवीन परिवर्तनों के संगम से ओडिसी नृत्य शैली में अनूठा रंग भर दिया है. मंदिरों से निकल कर 1950 के दशक के बाद रंगमंच पर ओडिसी ने अपनी पहचान और ख्याति देश-विदशों में भी कायम की. बता दें, 1953 का वर्ष था जब भारतीय संगीत नाटक अकादमी ने ओडिसी को शास्त्रीय नृत्य शैली का दर्जा दिया. 

कला और संस्कृति का हस्तांतरण

पौराणिक कथाओं और ईश्वरीय आराधना से लबरेज़ ओडिसी नृत्य ने भारतीय संस्कृति को एक नई उड़ान दी. आज 2023 भी एक ऐसा समय है जब यह कहने में संकोच नहीं होता कि हमारी पुरानी पीढ़ियों का कर्तव्य है कि वो नई पौध को कला हस्तांतरित करें और कला के ज्ञान को पल्लवित और पुष्पित करें. आज आजादी के कई सालों बाद भी हमारी धरोहरों की सांसें चलती रहनी चाहिए और युवाओं, बच्चों और किसी भी उम्र की असीमित इच्छाओं को एक आकार जरूर मिलनी चाहिए. रंगमंच तो सचमुच एक मंदिर सा प्रांगण है हीं लेकिन आज साधकों को साधना आश्रम और नृत्य-संगीत के ऐतिहासिक ज्ञान से भी परिचित होना आवश्यक है.

1 संगीत शिक्षायतन के एक कार्यक्रम के दौरान
बिहार यूथ कॉन्क्लेव कार्यक्रम के दौरान

आजादी के बाद भारतीय नृत्य शैलियों में स्थायित्व और परिवर्तन को संभालने का दायित्व

आजादी के बाद पुनर्निर्माण और नवजागरण के दौर में भारतीय शास्त्रीय नृत्यों ने भी एक नई गति पाई है और एक नए दौर में कदम रखा है. प्रिशा जैसे बचपन को परिवार का भी साथ जरूर मिलना चाहिए जो उनकी इच्छाओं को समझकर उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें. संगीत शिक्षायतन जैसी संस्थानों ने हमेशा कलाकारों को प्रोत्साहित किया है. प्रिशा की गुरू श्रीमती कविता मिश्रा (कोलकाता) जिस प्रेम से उसे एक कलाकार के रूप में गढ़ती जा रहीं, वह एक सुंदर प्रयास और प्रिशा के प्रशिक्षण में एक अदम्य विश्वास है. अभी प्रिशा अपने परिवार के साथ योकाहामा, जापान में रहतीं हैं. पिता प्रशांत लाभ टेलीकॉम इंजीनियर और मां अमृता कुमारी आईटी पेशेवर हैं. भगवान जगन्नाथ की मूर्ति भले अधूरी हो पर मन में प्रेम, लगन और समर्पण हो तो आदमी की इच्छाओं को भगवान भी जरूर पूरी करते हैं.

नोट: इस लेख में दिए गए जानकारी की पुष्टि एक बिहारी न्यूज नहीं करता. ये लेखक के अपने विचार और समझ के अनुसार लिखा गया लेख है. 

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