Caste Census Report: बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट सामने आई है. राज्य सरकार ने पिछले दिनों सभी जातियों की आबादी की रिपोर्ट सार्वजनिक की थी. अब उसने आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट भी सार्वजनिक कर दी है. इस रिपोर्ट में कई ऐसे चौंकाने वाले फैक्ट्स सामने आए हैं, जिनके बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. राज्य में राजनीतिक रूप से सबसे प्रभावी जाति यादव समाज की है लेकिन इस रिपोर्ट के अनुसार यह जाति समाज में सबसे बुरे हाल में है.
आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक यादव समुदाय की स्थिति बेहद नाजुक है. 35.87 फीसदी यादव परिवार गरीब हैं. सबसे बुरा हाल सरकारी नौकरियों को लेकर है. इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद यादव समुदाय के पास केवल 1.55 फीसदी सरकारी नौकरी है. इनकी तुलना में ओबीसी की कई अन्य जातियां संख्या बल में इनसे बहुत कम होने के बावजूद सरकारी नौकरियों में ठीक-ठाक संख्या में हैं.
वहीं सामान्य वर्ग की बात करें तो इसमें ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ और राजपूत जाति आती है. कायस्त समाज का आबादी केवल 0.6 फीसदी है लेकिन सरकारी नौकरी में उनकी हिस्सेदारी 6.68 फीसदी है. यानी आबादी से हिसाब से करीब 10 गुना अधिक. इसके बाद भूमिहार समाज आता है. उनकी आबादी 2.86 फीसदी है, लेकिन सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 4.99 फीसदी है. फिर आते हैं ब्राह्मण. इनकी आबादी 3.65 फीसदी और सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.6 फीसदी है. चौथे स्थान पर राजपूत हैं. इनकी आबादी 3.45 फीसदी और सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.81 फीसदी है.
वहीं बिहार में पिछड़ा वर्ग काफी प्रभावी है. इसमें चार प्रमुख जातियां हैं- कुर्मी, कोइरी, यादव और बनिया. 1990 के दशक के बाद इनका प्रभाव काफी बढ़ा है. ऐसा कहा जा रहा है कि पिछड़ी जातियों को मंडल आंदोलन और ओबीसी आरक्षण का बहुत फायदा हुआ.