किसी भी सभ्यता और संस्कृति को जानने-समझने का पैमाना,वहां के पाक-कला की शैलियां भी है. बिहार के कितने हीं लज़ीज़ व्यंजन अब घरों से निकल कर जहां स्ट्रीट फूड्स के रूप में अपनी जगह बना रहें, वहीं सदियों से कई परम्परागत व्यंजन भी अपने स्वाद और सुगंध से लबरेज़ हो एक मुक़ाम क़ायम कर रहें. चम्पारण का इतिहास कई इम्तिहानों से गुज़रता हुआ खुद को दुनिया भर से भी आज जोड़ रहा.
कितने हीं संघर्षों में भी खुद को स्थापित करते रहने की जिजीविषा से भरा, पूर्वी भारत का यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जिला चम्पारण केवल बिहार के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी एक पथप्रदर्शक है. आज हम चम्पारण की बात करेंगे जहां से फ़िलवक़्त चम्पारण मटन हांडी (Champaran Handi Mutton) एक ब्रांड बनकर उभरा है. इन दिनों चम्पारण मटन की खुश्बू केवल मटन से नहीं, बल्कि एक फ़िल्म ‘चम्पारण मटन’ (Champaran Mutton Film) के ऑस्कर के सेमीफ़ाइनल में चुने जाने से आ रही, जिसके अवार्ड जीतने की प्रतिक्षा मानों किस्से-कहानियों से परे इतिहास की इबारतें लिखेंगीं.
बिहार की फ़िल्म ‘चम्पारण मटन’ के बहाने हांडी मटन के उम्दा स्वाद की भी चर्चा
1972 से स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड दिया जा रहा और चम्पारण मटन (Champaran Mutton Film) फ़िल्म इस अवार्ड के नैरिटिव (कथा) कैटेगरी में नामित हुई है. वैसे तो ऑस्कर के नियमों के तहत ज्यादा बातें सार्वजनिक नहीं की गईं हैं, फिर भी यह फ़िल्म एक उम्मीद जगाती है. अवार्ड की घोषणा अक्टूबर तक होगी, तब तक हमें भी वैसे हीं इंतज़ार करना होगा, जैसे चम्पारण मटन अपने उम्दा स्वाद के लिए पकने में समय लेता है.
देश-दुनिया के पटल पर छाई बिहार की यह फ़िल्म आर्थिक-सामाजिक-पारिवारिक खींचतान के बीच भी एक बेहतर दुनिया के लिए प्रयासरत है. पंचायत, जामुन, सनक जैसी फ़िल्मों से नाम कमा रहे चंदन रॉय किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं. कहानी कोरोना लॉकडाउन में नायक के नौकरी छूटने पर बेरोजगारी से हालात में बढ़ती मुश्किलें जो सुरसा की तरह मुंह फाड़े खड़ी हो जाती हैं को सामने लाती हैं. नायिका फ़लक खान और बिहार के अन्य दस कलाकारों संग व्यंग्य-हास्य में लिपटी यह कथा रोमांस के तड़के से रोमांचक हो उठती हैं. तो चम्पारण मटन पर बुनी गई यह कथा FTII पुणे के अंतिम सेमेस्टर की पढ़ाई के प्रोजेक्ट पर 25 मिनट्स की यह फ़िल्म रंजन उमा कृष्ण कुमार निर्देशित है. तो फ़िल्म के इंतज़ार के क्रम में क्यों न चम्पारण मटन का स्वाद लिया जाए. हम इस सच को भी नजरअंदाज़ नहीं कर सकते कि महंगाई भले हो, पर अब जब आम जन-जीवन पटरियों पर दौड़ने लगा है तो अब चम्पारण मटन हांडी अपने परिवार और दोस्तों के साथ खाकर खुशियां बांटने की भी घड़ी है.
इतिहास के पन्नों में दर्ज चम्पारण हांडी मटन की अभूतपूर्व यात्रा
बिहार का नाम ज़ेहन में आया नहीं कि लिट्टी की बाटियां कौंध उठती है आंखों में. अब तो चम्पारण हांडी मटन भी दिलों-दिमाग पर छा जाता है. हम जब इतिहास के पन्नों से गुज़रें तो बिहार की यह रेसिपी सहज हीं लुभाती है. चम्पारण हांडी मटन की यात्रा अभूतपूर्व रही है. नेपाल और बिहार की सीमा के पास एक गांव घोड़ासहन है. इस आंचलिक क्षेत्र में पहले मटन को खुली हांडी में पकाया जाता था. धीरे-धीरे मटन हांडी की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई कि यह चम्पारण से मोतिहारी होते हुए बिहार के अन्य शहरों में भी अपने कदम रखता गया.
चम्पारण मीट या मटन को आहुना, हांडी मीट और बटलोई के नाम से भी पुकारा जाता है. आहुना, मिट्टी के बरतन को कहा जाता है, जिसमें मटन बनाया जाता है. मिट्टी के कारण हांडी मटन में एक सोंधापन इस कदर मन में रच बस जाता है, मानों जीवन के साथ कोई गरमाहट भर रिश्ता ! मटन बनाने वाले कहते हैं कि हांडी हर बार नई होती है. हम कह सकते हैं कि जिस तरह ढ़ककर बिरयानी बनाई जाती है उसी तरह मटन भी. कह सकते हैं कि हांडी मटन दम शैली में तैयार की जाती है जिसमें भाप बाहर नहीं आ पाती और सुगंध बनी रहती है. यह बात सर्वविदित है कि हांडी मटन बनाने में चम्पारण से आने वाले कारीगरों का कोई जवाब नहीं. चम्पारण के इन कारीगरों की मांग भी बहुत ज्यादा है.
हांडी मटन के बनने-बनाने की विधियां घर से लेकर रेस्तरांओं तक
अधिकांशतः मटन धोकर, उसी अनुपात में पहले पीसे हुए प्याज, लहसुन पेस्ट और भारतीय मसाले का पेस्ट, नमक, हल्दी, दही, सरसों तेल, घी में लगभग 2 घंटे के लिए मैरिनेट कर रख दिया जाता है. फिर हांडी में सरसों तेल गर्म कर, साबुत जीरा, सूखे लाल मिर्च, तेजपत्ता, खड़े गरम मसालें लहसुन की पूरी कलियां 8-10 की संख्या में, हल्दी, नमक और ओखल-मुसल में कूटे ताज़ा मसाले डालकर मटन के साथ मिलाया जाता है. कटे प्याज की भरपूर मात्रा भी डाली जाती है और थोड़ा पानी भी डाला जाता है. हांडी को ढ़कने के बाद गुंथे हुए आटे से ढ़क्कन के किनारे बंद किए जाते हैं. फिर हांडी मटन लकड़ी के कोयले पर पकाया जाता है. मटन धीमी आंच पर एक से डेढ़ घंटे तक पकने दिया जाता है. चूंकि हांडी मे लगभग एक किलो मीट पकती है तो उसी हिसाब से समय का अनुमान लगाया और पकाया जाता है. इस मटन को करछुल से नहीं चलाया जाता है बल्कि बस हांडी को हल्के से हिला दिया जाता है. वैसे इसे बहुत जगहों पर मटका गोश्त भी कहते हैं. वैसे बहुत लोग घरों में भी हांडी मटन बनाते हैं.
बिहार का यह व्यंजन हर जगहों पर मिल जाता है चाहे रेस्तरां हों या गलियां
बिहार का यह चम्पारण हांडी मटन अब अमूमन हर जगहों पर उपलब्ध है. फिर भी कुछ दूकानें ऐसी हैं जो बहुत प्रसिद्ध हैं. जैसे राजधानी पटना में Old Champaran Meat House अपने सुस्वादु मटन के लिए जाना जाता है. बिहार के पूर्णिया में टैक्सी स्टैंड के पास भी चम्पारण मटन इतने लुभावने तरीके से बनाया जाता है कि दूर-दूर से लोग खींचें चले आते हैं. नोएडा एक्सटेंशन स्थित चम्पारण मीट हाऊस के स्वाद की भी खूब चर्चा होती है. यहां तो मटन के अलावा लहसुन के पोटली की डिमांड भी बहुत ज्यादा है. वैसे मटन में प्रोटीन भरपूर होता है. यह शरीर को फिट रखता है और वजन कम करने में मददगार भी होता है. लोग मटन के साथ रोटी, नान, पराठे और चावल तो खाते हीं हैं, अब तो बिहार की लिट्टी के साथ भी यह चाव से खाया जाता है.
देश-विदेशों में भी कई तरीकों से बनाया जाता है मटन
देश में कई तरीके से मटन बनाया जाता है और वे अपने स्वाद में भी अलग होते हैं. चाहे रोगनजोश हो या राजस्थान का लाल मांस, बंगाल का कोशा मांगशो हो या आंध्रप्रदेश का गोंगुरा मामसम, अगर स्वाद की बात की जाए तो बिहार का चम्पारण हांडी मटन की बात हीं कुछ और है. जाने-माने भारतीय प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार और कॉलम्निस्ट वीर सांघवी कहते हैं “2010 के दशक में चम्पारण मीट एक अप्रत्याशित पसंदीदा व्यंजन बन सामने आया है. चम्पारण मीट इतना हिट है कि शेफ़ चिंतन पंड्या का संस्करण NYC (न्यूयॉर्क) के सबसे लोकप्रिय भारतीय रेस्तरां ‘धमाका’ का सिग्नेचर डिश है.”
हांडी मटन का स्वाद और पहचान अपने-आप में अनूठी और अलहदा है
सचमुच बिहार के व्यंजनों (Dishes of Bihar) में चम्पारण हांडी मटन निश्चित रूप से एक ऐसा अध्याय जोड़ता है, जिससे देश-दुनिया में बिहार अपनी पहचान को अक्षुण्ण रखने में भी समर्थ हो गया है. आज भले हीं हम फ़िल्म चम्पारण मटन के बहाने इसके स्वाद की बात कर रहें, पर यह फ़िल्म एकतरफ महंगे मटन खाने की जद्दोजहद को रेखांकित कर रही और सामाजिक-राजनीतिक -आर्थिक ताना-बाना पर कटाक्ष करती भी नज़र आ रही. ऐसा कहना कि बिहार के लिए यह फ़िल्म एक ऐसी उम्मीद को पूरा करने का स्वप्न है, वहीं बिहार के ऐतिहासिक अस्तित्व के लिए भी निहायत जरूरी है. कहना होगा कि जो भी हो, चाहे फ़िल्म के अंदर और बाहर का संघर्ष, और चम्पारण हांडी मटन का लोगों के दिलों में पैठ बना चुका स्वाद, निश्चित रूप से अलहदा है.
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