Chhath Puja 2023: बिहार के महापर्व ‘छठ’ की शुरुआत 17 नवंबर से होने वाली है. छठ की तैयारियां जोरों- शोरों से शुरू हो चुकी है. ऐसे में आज जानेंगे छठ पर्व के महत्व के बारे में.
छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें प्रकृति का विशेष महत्व है. सूर्य और गंगा जैसे प्राकृतिक चीजों को हम नमन करते हैं. इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय अर्थात कद्दू-भात से होती है. इस दिन घर की साफ-सफाई की जाती है और मिट्टी के चुल्हे पर व्रती के लिए अलग से पवित्र खाना बनाया जाता है. व्रती सुबह उठकर स्नान करके पूजा करती है. इसके बाद अन्न ग्रहण करती है जिसमें दाल, भात, कद्दू रहता है. व्रती के लिए बनाए खाने में प्याज और लहसुन आदि नहीं होता है. व्रती के खाना खाने के बाद ही घर के लोग अन्न ग्रहण करते हैं.
छठ पर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है. इस दिन महिलाएं दिन भर अन्न और पानी ग्रहण नहीं करती है. वहीं संध्या में केला के पत्ते पर रसिया प्रसाद और केला चढ़ा कर पूजा की जाती है. इस दौरान व्रती और अन्य महिलाएं छठी मईया की गीत गाती हैं. इन गीतों में घर-परिवार और बच्चों की खुशियां और लंबी उम्र की प्राथना की जाती है.
वहीं छठ के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य होता है. इस दिन महिलाएं और घर के अन्य लोग सुबह से उठकर तैयारियों के जुट जाते हैं. इस दिन महिलाएं ठेकुआ का प्रसाद तैयार करती हैं तो वहीं पुरुष घाटों की साज सजावट में जुट जाते हैं. शाम के समय में घाटों को सजा सूप में सारे फल-प्रसाद आदि डालकर रखा जाता है. महिलाएं पानी में सूप लेकर खड़ी होती हैं और परिवार के सभी लोग अर्घ्य देते हैं.
छठ के आखिरी दिन सुबह वाला अर्घ्य पड़ता है. इस दिन वापस से घाटों की साफ-सफाई कर के सूप ले जाया जाता है. व्रती जल में खड़ी होती है और सभी उगते सूरज को जल देते हैं. इस दिन गंगा जल के साथ-साथ दूध का भी अर्घ्य दिया जाता है. मान्यता है कि दूध से अर्घ्य देने से सूर्य भगवान काफी प्रसन्न होते हैं.