एक क्रांति की उद्घोष है भाषा
सभ्यताओं की परतों को खोलती हुई,
हमने देखी है सभ्यताओं के विस्तार को मिटते हुए, उठते हुए, थम जाते हुए,
तुलसी, सूर, कबीर, मीरा औ’ रसखान की रखी नींव से परे
अब तो हिंदी, नई हिंदी के प्रवाह में स्वप्न से सत्य होती जा रही !
हिंदी आजाद भारत की राजभाषा है, किंतु
एक राष्ट्रभाषा की सघन इच्छाओं की मधुर टीस लिए
हम अग्रसर तो हैं निज भाषा में आकंठ डुबने के लिए
ये बलवती इच्छाएँ शोर नहीं हैं!
यह हिंदी क्या केवल मेरी है, एकल है!
नहीं, बिल्कुल नहीं, कदापि नहीं!
जन-जन के उत्थान की धारा में बहने के लिए
हिंदी के लिए क्यों हो विप्लव का आगाज़!?
यह मूल प्रश्न है…
हाँ, हिंदी घास पे सिहरती ओस-सी पीड़ा और रंग भरती है जीवन में अनंत से परे..
मैं भी उल्लसित होना चाहती हूँ
राजभाषा से राष्ट्रभाषा होने के इस शुभ-उत्सव में,
हमसब खो जाना चाहते हैं हिंदी के मन- प्रांगण में
उसे देने यह जीवन-आकाश और अटूट विश्वास,
हिंदी भविष्य के रंगमंच पर संवादों की अकथ्य दुनिया हैं
जो नेपथ्य में डूबी आत्मीय प्रकाश है!
इस शुभ-उत्सव में हिंदी मुझे कुछ कहना भी है तुमसे
गाँव- नगर-शहर-देश-दुनिया और दुनिया के अपार सीमाओं से पार भी
जितने लहज़े में भी तुम खुद को पाती जा रही हो
ये उपहार है हर हिंदी दिवस और हिंदुस्तान के गौरव के लिए
प्रकृति की तरह सरलता, सहजता और सुगमता से
खुली बाँहों में हिंदी का आलिंगन कर चलना तुम्हारा कर्म है
यही तुम्हारा संघर्ष है, प्रेम है ,सौंदर्य है
और यही तुम्हारा सफ़र है और अनंत विस्तार भी…
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