मणिपुर, भारत का एक अंग जो कई महीनों सेे जल रहा है. पिछले 83 दिनों से मणिपुर में हिंसा जारी है. इस बीच एक ऐसा वीडियो वारयल हो रहा है जिसे लेकर पूरे देश में खलबली मच गई. मणिपुर में कुकी समुदाय की दो महिला को निर्वस्त्र कर के परैड कराया गया. इस घटना ने अब तूल पकड़ लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर दु:ख जताया है. कहा कि गुनहगार बख्शे नहीं जाएंगे. उन्होंने कहा कि पूरे देश की बेइज्जती हुई है. इम मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकार से रिपोर्ट मांगी है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने यहां तक कह दिया कि या तो सरकार कार्रवाई करे, नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे.
मणिपुर के वायरल वीडियो में क्या है?
एक वीडियो को लेकर मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तनाव फैल गया है, जिसमें दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, यह वीडियो चार मई का है और दोनों महिलाएं कुकी समुदाय से हैं, वहीं जो लोग महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमा रहे हैं वो सभी मैतई समुदाय से हैं.
मणिपुर में फैली हिंसा की क्या है जड़?
मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत है. मैतेई ज्यादातर हिंदू होते हैं. प्रदेश के कुल 60 विधायकों में सेे 40 विधायक मैतेई समुदाय में से हैं. वहीं दूसरी ओर मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं. इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं. ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं. इसके अलावा मणिपुर में 8-8 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है.

भारतीय संविधान के आर्टिकल 371 सी के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं. ये विशेष सुविधाएं मैतेई समुदाय को नहीं मिलती. ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता. वहीं जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है. इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़ेें हैं.
कब हुई हिंसा की शुरुआत?
बता दें, मणिपुर में एक कानून है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं. चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाके में जाकर रह सकते हैं. मतलब साफ है नागा और कुकी समुदाय के लोग पहाड़ी इलाके में बस सकते हैं लेकिन मैतेई समुदाय के लोग नहीं.

इसे लेकर मैतेई समुदाय ने मणिपुर हाईकोर्ट (Manipur High Court) में याचिका दायर की. इस याचिका में उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग थी. इसे लेकर नागा और कुकी समुदाय में चिंता थी. अगर मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो उन्हें (मैतेई) पहाड़ी इलाकों में रहने और बसने की कानूनी इजाजत मिल जाएगी. ऐसे में कुकी समुदाय को अपनी जमीनें छिनने का डर था. इसी डर के कारण कुकी और नागा समुदाय ने विरोध का ऐलान किया था.
हिंसा की तो इसकी शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई. इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं. गर्वनमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था. इसमें कुकी और नागा समुदाय के लोग थे. देखतेे ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया. आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय में झड़प हो गई.
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