14 सिंतबर 1949 का साल था जब भारत के संविधान ने हिंदी को अपने आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया. हालांकि, आधिकारिक तौर पर पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया. तब से अबतक हर साल आज के दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है. ऐसे में हमने हिंदी के चाहने वालों, लेखकों और रचनाकारों से बात की और जानने की कोशिश की हिंदी दिवस पर उनका क्या कहना है.
हिंदी दिवस पर हमने लेखिका अणु शक्ति सिंह से बात की. उन्होंने कहा कि हिंदी आधिकारिक भाषा तो है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि रोज़गार की भाषा नहीं बन सकी. आगे कहा, “हिन्दी दिवस मनाने की औपचारिकता ख़त्म हो इस ख़ातिर यह ज़रूरी है कि हिन्दी रोज़गार की भाषा बने. लोगों को हिन्दी या अपनी मूल ज़बान में नौकरियां मिलें. जब यह भाषा रोज़गार देने लगेगी, इससे जुड़ी हीन भावना ख़ुद ख़त्म हो जाएगी.”
अणु शक्ति आगे अपने अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि इस साल के फरवरी माह में वह फ्रांस में थीं. वहां उन्होंने लोगों को जिस क़दर फ़्रेंच अपनाते देखा, वह कमाल था. अणु शक्ति कहती हैं, “ फ़्रांस में बहुत संभव है कि अंग्रेज़ी बोलने पर आपको जवाब न मिले. वह अपनी भाषा में रोटी भी कमाते हैं और साहित्य भी रचते हैं. यही बात मेंडेरिन की भी है. मैं हिन्दी के लिए ऐसा ही एक सपना देखती हूं.” बता दें, अणु शक्ति एक लेखिका हैं जो महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर मुखर होकर लिखती हैं. साथ ही समसामयिक मुद्दों पर लिखती हैं. इनकी एक किताब भी प्रकाशित हुई है जिसका नाम है ‘शर्मिष्ठा’.
Hindi Diwas 2023: उच्च शिक्षा में भी हो हिंदी का उपयोग
सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व फैकल्टी डॉ. शंभु कुमार सिंह कहते हैं कि अभी भी हिंदी रोज़गार और नौकरी की भाषा नहीं बन पाई है. इसे लेकर काम होना चाहिए. डॉ. शंभु कहते हैं कि न सिर्फ प्रारंभिक शिक्षा बल्कि उच्च शिक्षा में भी हिंदी का उपयोग होना चाहिए. हाई कोर्ट में भी यह सहज स्वीकार्य हो तभी स्वतंत्रता पश्चात संसदीय संकल्प की पूर्ति होगी. यह अब एक सार्वभौम भाषा बन गई है, इसकी अनदेखी असंभव है.

वहीं ‘ओह! रे किसान’ किताब की लेखिका अंकिता जैन अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं कि दो साल पहले तक हिंदी के लिए जो कंटेंट राइटिंग के लिए मानदेय मिल रहा था वह 1 रुपये प्रति शब्द था. लेकिन अब इसे 25 पैसे प्रति शब्द करने की बात कही जा रही है. कई सारे बड़े मीडिया हाउस ने अपनी डिजिटल वेबसाइट के लिए कंटे लिए जो कंटेंट हिंदी लेखकों से लिखवाया उसके लिए एक ढेला भी नहीं दिया जबकि उन्होंने उससे पैसा बनाया.
Hindi Writers: हिंदी लेखकों के हाथ लग रही है निराशा
अंकिता जैन आगे कहती हैं, “कंटेंट राइटिंग कर रहे कुछ मित्रों को बीते 2 साल में हताश-निराश होकर टूटते देखा है. बहुत से लेखकों के लिए किताबों की रॉयल्टी साल में जितनी आती है उतने में उनके घर में सालभर का आटा भी नहीं आता. अब यह मार्किट डाउन हो रहा है. लेकिन हां ‘हिंदी कूल है’ और हमें हिंदी से प्रेम है, उसी हिंदी से जिसमें ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ ही अनुकरणीय हैं.”