आज योग दिवस है. आज के दिन यानी कि 21 जून को हर साल विश्व अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर योग की उपयोगिता और इसका इतिहास जानने के लिए हमने बिहार के रहने वाले अवधेश झा से बात की. अवधेश झा ज्योतिर्मय ट्रस्ट (यूनिट ऑफ योग रिसर्च फाउंडेशन, मियामी, फ्लोरिडा यू.एस.ए के ट्रस्टी एवं अतर्राष्ट्रीय योग समन्वयक हैं. अवधेश झा ने कहा कि भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है. बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया. इसके बाद पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया.
अवधेश झा ने बताया भारत में योग का इतिहास
उन्होंने बताया कि योग का प्रामाणिक ग्रंथ ‘योगसूत्र’ 200 ई.पू. योग पर लिखा गया पहला सुव्यवस्थित ग्रंथ है. पहली बार 200 ई.पू. महर्षि पतंजलि ने वेद में बिखरी योग विद्या का सही- सही रूप में वर्गीकरण किया था. महर्षि पतंजलि के बाद योग का प्रचलन बढ़ा और यौगिक संस्थानों, पीठों तथा आश्रमों का निर्माण होने लगा. इसमें केवल राजयोग की शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी. अवधेश झा ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में योगियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते हैं. उन्होंने बताया कि योगाभ्यास का प्रामाणिक चित्रण लगभग 3000 ई.पू. सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय की मोहरों और मूर्तियों में मिलता है.
किसे कहते हैं योग?
अवधेश झा ने एक बिहारी न्यूज से बातचीत में बताया कि योग का अर्थ है मन को इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना. योग से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि मिलती है.
क्या है योग के 8 अंग?
योग गुरु अवधेश झा ने बताया कि शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों वाला योग किया जाता है. योग के ये आठ अंग हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि. योगसिद्धि के लिए इन आठों अंगों का साधन आवश्यक और अनिवार्य है. इनमें से प्रत्येक के अंतर्गत कई बातें हैं. अवधेश झा ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति योग के इन आठ अंग को सिद्ध कर लेता है, वह सभी प्रकार के क्लेशों से छूट जाता है.
अवधेश झा ने कहा कि योग के प्रथम अभ्यास है आसन. इसलिए आसान में जरूर बैठें. हालांकि, उन्होंने कहा कि जिस आसन में आप अधिक देर बैठ सकते हैं उसी आसन में बैठें. बता दें, कुछ प्रमुख आसन इस प्रकार हैं- सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन.
International Yoga Day: जानें प्राणायाम के बारे में
चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्
योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्
अवधेश झा ने इस श्लोक के माध्यम से बताया, “ प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है.” इसका आम शब्दों में अर्थ है कि योगी को अपने सांस का नियंत्रण करना चाहिए.

अवधेश झा योग करते हुए
अवधेश झा ने बताया कि प्राणायाम करने के लिए भूमि पर आसन बिछाना चाहिए. बैठते समय हमारे रीढ़ की हड्डियां सीधी होनी चाहिए. फिर आप नाक से लंबी सांस फेफड़ों में ही भरे, फिर लंबी सांस फेफड़ों से ही छोड़ें. सांस लेते और छोड़ते समय एक सा दबाव बना रहे.
योग गुरु ने बताया कि प्रतिदिन प्राणायाम करने से मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती है. प्राणायाम मन की स्थिरता को पाने में मदद करता है. प्राणायाम योग की उच्च क्रियाओं धारण, ध्यान और समाधि में मदद करता है और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाता है. साथ ही प्राणायाम से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर काबू पाने में मदद मिलती है. अवधेश झा ने कहा कि कोविड-19 के समय में भी योग और विशेष तौर पर प्राणायाम से लोगों को बहुत मदद मिली.
ध्यान क्या है? योग में ध्यान का क्या महत्व है?
वहीं योग में ध्यान का महत्व बताते हुए अवधेश झा ने कहा कि योगशास्त्र में ध्यान का स्थान बहुत ऊंचा है. ध्यान करना बहुत सरल है. आप केवल आंखें बंद करें और ध्यान हो जाता है. पांच मिनट तक बंद आंखों के सामने के अंधेरे को देखते रहें या सांसों के आवागमन को महसूस करें. सभी बाहरी कार्यों से अपने आप को अलग कर के एक ही कार्य में लीन हो जाना ही ध्यान है. योग गुरु ने कहा कि किसी एक कार्य में किसी का इतना लिप्त होना कि उसे समय, मौसम, एवं शारीरिक जरूरतों का बोध न रहे इसे ही ध्यान कहते हैं.
अवधेश झा ने कहा, “ निरंतर ध्यान करते रहने से मस्तिष्क को नई उर्जा प्राप्त होती है. ध्यान से आपकी चेतना को लाभ मिलता है. इससे आपके भीतर सामंजस्यता बढ़ती है. जब भी आप भावनात्मक रूप से अस्थिर और परेशान हो जाते हैं, तो ध्यान आपको भीतर से स्वच्छ, निर्मल और शांत करते हुए हिम्मत और हौसला बढ़ाता है.”
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