प्रेगनेंसी: एक परिवार की रीढ़ होती है स्त्री, वह जानती है माँ होना.

जब माँ बनने का अवसर आता है, तब एक स्त्री केवल माँ नहीं होती, उसका जीवन एक और जीवन से जुड़ जाता है. माँ बनने के उत्साह से परिवार की खुशियाँ भी बढ़ जाती हैं. नई माँ बनने की ऊर्जा और रोमांच उन्हें जीवन में नए अनुभव और नई सीख लेने का भी वक़्त होता है. यह बहुत खूबसूरती से जीवन के साथ तालमेल रखने का समय होता है. खुद में बदलावों को महसूस कर माँ होने की जिम्मेदारियों को सहजता से अपनाने की यह प्रक्रिया भी साथ- साथ चलती है. तो परिवार की और डॉक्टर की सलाह से प्रेगनेंसी के दौरान आहार (Diet of Pregnant Women) और कामों में संतुलन बनाना भी जरूरी है.

जब माँ बनने का अवसर आता है, तब एक स्त्री केवल माँ नहीं होती, उसका जीवन एक और जीवन से जुड़ जाता है. माँ बनने के उत्साह से परिवार की खुशियाँ भी बढ़ जाती हैं. नई माँ बनने की ऊर्जा और रोमांच उन्हें जीवन में नए अनुभव और नई सीख लेने का भी वक़्त होता है. यह बहुत खूबसूरती से जीवन के साथ तालमेल रखने का समय होता है. खुद में बदलावों को महसूस कर माँ होने की जिम्मेदारियों को सहजता से अपनाने की यह प्रक्रिया भी साथ- साथ चलती है. तो परिवार की और डॉक्टर की सलाह से प्रेगनेंसी के दौरान आहार (Diet of Pregnant Women) और कामों में संतुलन बनाना भी जरूरी है.

कई शोधों से यह बात उभर कर आती है कि प्रेगनेंसी में महिलाएँ जैसा भी खाने का चयन करती हैं, वो आने वाली पीढ़ी के लिए मायने रखती है विशेष कर पोषण से भरपूर आहार. यह कहना कि “You are what You eat ” बिलकुल सही है. वैज्ञानिक तथ्य भी इसे साबित करते हैं. संतुलित आहार केवल माँ के लिए हीं नहीं बल्कि आनुवांशिक( genetically) रूप से जुड़े होने से आने वाले बच्चे के जीवन भर के स्वास्थ्य की नींव है. प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं के लिए ऐसा कोई डायट प्लान One- size -fit- all तो नहीं है पर वे अपनी पसंद जिसमें पोषण की क्षमता ज्यादा हो, वैसे भोजन ले सकतीं हैं. यहाँ डॉक्टर की सलाह भी मायने रखती है. तो कुछ जानकारियांँ महत्वपूर्ण हैं और उन्हें जानना हर प्रेग्नेंट महिला को जरूरी भी है.

सबसे पहले डॉक्टर से मिलना जरुरी है कब और क्यों, तो आइए डालें इसपर नज़र

पीरीयड्स न होने पर प्रेगनेंसी की संभावना महसूस होती है तो घबराएँ नहीं और किसी महिला डॉक्टर ( Gynaecologist) से मिलें. प्रेगनेंसी हो तो सलाह के साथ आहार पर भी बातें करें. अधिकांशतः वे न्यूट्रिशन एक्सपर्ट से भोजन का चार्ट बनाने के लिए परामर्श करने कहतीं हैं.

माँ बनने के समय से लेकर डिलीवरी तक का समय पूर्ण रूप से देखभाल का होता है. इसे समझना और भी बढ़ जाता है जब पहली बार माँ बनने का समय हो. फिर भी हर बार एक समान देखरेख हो, यह जरूरी नहीं. कई बार प्रेगनेंसी का समय आराम से पूरा होता है तो कभी मुश्किलें भी आतीं हैं.

प्रेगनेंसी के शुरुआत में डॉक्टर से मिलना माँ और बच्चे के लिए बहुत आवश्यक है. केवल संतुलित भोजन हीं नहीं बल्कि कुछ विटामिन जो आसानी से खाने में नहीं मिलतें, उसके लिए डॉक्टर सप्लीमेंटस( supplements) लिखते हैं जो गर्भस्थ शिशु के लिए चाहिए.

डॉक्टर की सलाह या मदद से बच्चे के विकास के लिए जरूरी बातें

उन महिलाओं जो वेजिटेरियन और वेगन होतीं हैं उनके आहार में कुछ पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जो विटामिन से हीं पूरी हो पातीं हैं. बच्चे के ब्रेन के समुचित विकास के लिए विटामिन B9, B12, जिंक और आयोडीन की जरूरत होती है.कई मानसिक विकार जैसे आॅटिज़्म, ADHD, बॉयपोलर समस्याएँ और सिज़ोफ्रेनिया आदि के लिए ये विटामिन उनके दूर होने में सहायक हैं.

कभी कभी नॉन वेजिटेरियन आहार भी प्रेगनेंसी के दौरान खाना अच्छा नहीं लगता तो यह भी ध्यान रखने योग्य है. जन्मजात विकलांगता ( congenital disabilities) को रोकने में फोलेट से भरपूर आहार हो, इसकी सुनिश्चितता के लिए सप्लीमेंटस भी दिए जाते हैं.और हर महीने डॉक्टर से मिलते रहना भी जरूरी है.

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प्रेगनेंसी के दौरान माँ के रोजमर्रा के आहार में क्या शामिल होने चाहिए

माँ बनना एक सुखद अनुभूति है तो यह आवश्यक है कि वे अपने आहार में उन चीजों को शामिल करें, जो गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए भी निश्चित रूप से अच्छा हो.

  • कार्बोहाइड्रेट की पूर्ति साबुत अनाज, दालें, ज्वार – बाजरा, ब्राउन राइस, ओट्स सूजी से की जा सकती हैं.
  • नॉन वेजिटेरियन महिलाओं को प्रोटीन से भरपूर मांसाहारी आहार मिल जाते हैं. पर वेजिटेरियन हों तो दाल, दही, छाछ, चीज़ और दूध आहार में शामिल कर सकते हैं. प्रोटीन के अलावा इनमें कैल्शियम, विटामिन B12 भी पाया जाता है. साथ हीं वसा हर हाल में मिलनी चाहिए अगर प्रेग्नेंट हों या नहीं.
  • बच्चे का मस्तिष्क विकसित हो, इसके लिए आयोडीन चाहिए. आयोडीन नमक खाने में उपयोग कर सकते हैं. साथ हीं डेयरी उत्पादों में भी आयोडीन प्रचुर होता है.
  • फलों और सब्जियों का ज्यादा सेवन करें. जूस और स्मूदी भी फ़ायदेमंद है. सुबह नाश्ते में दलिया, ओट्स, ब्राउन ब्रेड, डोसा – इडली, पोहा और उपमा आदि को शामिल कर सकते हैं. फलों में पपीता और अनानास न खाएं. कुछ सब्जियां मसलन कटहल, बैंगन , करेला भी खाने से बचें.
  • मांसाहारी भोजन में अधपके मांस या समुद्री जीवों को पूरी तरह पकाकर हीं खाएं. अंडे भी अच्छे से पकाकर हीं खाएँ. मछलियों में पारा बहुत होता है जो शिशु के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है.

प्रेगनेंसी के उन पड़ावों से गुजरना जो पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण हैं

प्रेगनेंसी के दौरान किसी अच्छे फिटनेस ट्रेनर के साथ हल्के योगासन और व्यायाम कर सकतीं हैं. शरीर के थकान से निजात पाने के लिए पानी पीना चाहिए. अगर पानी नहीं अच्छा लग रहा और उल्टी आए तो पानी में पुदीने का रस, नींबू और नमक डाल पी सकते हैं. नारियल पानी भी एक सेहतमंद विकल्प है.

प्रेगनेंसी के पहले कुछ हफ्ते ऐसे होते हैं जब भूख ज्यादा महसूस नहीं हो. फिर अंतिम समय में भी ऐसा हो तो हल्के स्नैक्स लिए जा सकते हैं. कोई फल और ग्लूकोज़ जैसे पेय भी ले सकते हैं. मेवे भी खा सकते हैं

जब महिलाएँ प्रेगनेंसी के दौरान अपने शरीर के प्रति सहज नहीं हो पातीं

अकसर होने वाली माँ मार्निंग सिकनेस अनुभव करती हैं. उस अवस्था में जूस लिया जा सकता है. कई बार केले और दूध का शेक भी सहायक होता है. वैसे डॉक्टर कहते हैं कि 6 महीने तक ज्यादा कैलोरी की जरूरत नहीं होती. वे दूसरी और तीसरी तिमाही में 300 के करीब ज्यादा कैलोरी लेने की सलाह देते हैं. प्रेगनेंसी के पहली तिमाही में सामान्य वजन होता है. दूसरी तिमाही में वजन बढ़ते हुए तीसरी तिमाही में 10 से 12.5 किलोग्राम वजन बढ़ता है तो यह अच्छा माना जाता है.

कुछ सलाह जिसे प्रेगनेंसी में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

पहली तिमाही में खुद का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है. यह समय बच्चे की शारीरिक अंगों के विकसित होने का समय है. बहुत सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए. प्रेग्नेंट महिलाएँ लंबी दूरी, पहाड़ों की यात्रा, झुककर किए जाने वाले काम, भारी चीज़ें न उठाना और सीढ़ियों पर चढ़ना- उतरना ना करें तो बेहतर और सुरक्षित है.

कुछ लक्षण ऐसे भी हैं जिनसे वाक़िफ़ हों, तो तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए. ब्लीडिंग हो, पेट में दर्द, सिर में दर्द, हाथों और पैरों सहित चेहरे में सूजन, बुखार और बच्चे की मूवमेंट का एहसास ना होना. नियमित समय पर अल्ट्रासाउंड करवा बच्चे के विकास की जानकारी ली जा सकती है.

प्रेगनेंसी एक ऐसा समय है जब माँ और बच्चे के लिए स्वस्थ वातावरण हो

यूँ तो परिवार के लिए भी यह सुखद और खुशहाली का वक्त है तो घर के बड़े – बुजुर्ग भी सलाह देते हैं. माँ और बच्चे के बीच एक गहरा संबंध बन जाता है जो माँ के सोच- विचार की भी उपज होती है. आनुवांशिक रूप से केवल आहार हीं नहीं बल्कि सोच का भी प्रभाव बच्चे में हस्तांतरित होता है. यह भी पाया गया है कि बहुत से काम जो प्रेग्नेंट महिलाएँ करती हैं मसलन बुनाई से बच्चे का दिमाग त्वरित गति से विकसित होता है. साथ हीं, पढ़ना भी एक स्वस्थ प्रक्रिया है जिसका असर बच्चे पर होता है.

माँ बनने की इच्छा इतनी घनीभूत होती है कि स्त्रियाँ खुद को परिपूर्ण नहीं मान पातीं जब तक खुद माँ न बन पाएँ. जिस परिवार की रीढ़ होती है एक स्त्री, वह जानती है माँ होना. पर यह भी आज जरूरी नहीं कि माँ बनने से हीं, वह खुद को साबित करे. आज तो इतने तरीके हैं विज्ञान के कि एक स्त्री के लिए माँ होना कतई कठिन नहीं, मुश्किल नहीं.

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