भारत के चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3) मिशन के सफल होने के बाद से हमारे बीच चांद की चर्चा बढ़ गई है. अब चांद भारत और भारतवासियों के लिए दूर नहीं. ‘कर लो दुनिया मुट्ठी’ की तर्ज पर हमने चांद को मुट्ठी में कर लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने भी कहा कि अब चंदामामा दूर के नहीं बल्कि ‘टूर’ के हैं. भारत के लिए चांद केवल पृथ्वी का नेचुरअल सैटेलाइट नहीं है बल्कि एक भाव है. जब बच्चे खाना न खाने की जिद्द करते हैं या सोते नहीं हैं तो मां उन्हें चंदामामा की कविता-कहानी सुनाती है. चांद वर्षों से हमारे पर्व-त्योहार, गाने, कविता-कहानी आदि में शामिल है. आज जब चंद्रयान 3 (Chandray+aan 3) मिशन सफल हो चुका है और भारत के लिए खुशी का क्षण है तो आइए जानते हैं चांद पर लिखी कुछ कविताएं.
चांद का कुर्ता ‘दिनकर’ की कविता
चांद पर कई सारी कहानियां, कविता और लेख बने हैं. इनमें से एक है राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘चांद का कुर्ता’. पेश है इस कविता की पंक्ति
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला
सिलवा दो मां मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूं
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं.
निरंकार देव सेवक की कविता ‘चंदामामा दूर के’…
चंदा मामा दूर के!
साथ लिए आए तारे,
चमक रहे कितने सारे,
राजमहल में जैसे जगमग,
जलते दीप कपूर के!
चंदा मामा दूर के!
दूर-दूर बिखरे तारे,
लगते हैं कैसे प्यारे,
गिरकर फैल गए हों जैसे,
लड्डू मोतीचूर के!
चंदा मामा दूर के!
चांद का वर्णन केवल बच्चों की किताब में ‘मामा’ की तरह ही नहीं बल्कि प्रेमी-प्रेमिका के बीच सुनाई जाने वाली कविताओं में भी काफी समय से चांद की चर्चा आम है. कवि चंदन यादव एक प्रेमिका की सुंदरता की तुलना करते हुए अपनी कविता ‘तुम चांद हो’ में लिखते हैं,
“जैसे चंद्रमा पर होते हैं
दाग़ कई और
ऊबड़-खाबड़ गड्ढे
वैसै ही तुम्हारे चेहरे पर
नाक और होंठो का
उतार-चढ़ाव
और काली आंखें मानो जैसे
काम करती हैं नज़रबट्टू का
और मेरी नज़रों से बचा लेती हैं तुम्हे”
वहीं वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा अपनी कविता ‘सफ़ेद रात’ में कहते हैं,
“सबसे अधिक खींचते हैं फ़ुटपाथ, ख़ाली खुले आधी रात के बाद के फ़ुटपाथ
जैसे आंगन छाए रहे मुझमें बचपन से ही और खुली छतें बुलाती रहीं रात होते ही, कहीं भी रहूं.”
राजेश जोशी की एक कविता है चांद की वर्तनी.
चाँद लिखने के लिए चा पर चंद्र बिंदु लगाता हूं
चाँद के ऊपर चाँद धर कर इस तरह
चाँद को दो बार लिखता हूं
चाँद की एवज़ सिर्फ़ चंद्र बिंदु रख दूं
तो काम नहीं चलता भाषा का
आधा शब्द में और आधा चित्र में
लिखना पड़ता है उसे हर बार
शब्द में लिखकर जिसे अमूर्त करता हूं
चंद्र बिंदु बनाकर उसी का चित्र बनाता हूं
आसमान के सफ़े पर लिखा चाँद
प्रतिपदा से पूर्णिमा तक
हर दिन अपनी वर्तनी बदल लेता है
चंद्र बिंदु बनाकर पूरे पखवाड़े के यात्रा वृत्तांत का
सार संक्षेप बनाता हूं
जहां लिखा होता है चाँद
उसे हमेशा दो बार पढ़ना चाहता हूं
चाँद
चाँद!
वहीं चांद-सूरज को पाने की लालसा को भी कई कवियों ने कागज पर अपनी कलमों से उतारा है. प्रमिला शंकर की कविता ‘चलो चांद पर चलें’ इसी लालसा पर खरा उतरता है.
“चांद सूरज की दूरियों को
नापता रहा है मनुष्य
हम भी वह नाप उधार लेकर
तारों में बसे चलकर
या चांद पर उतर जाएं
चर्खा कातेंगे चांद पर
हल जोतेंगे चांद पर…
रोटियां सकेंगे चांद के उजाले में
चलो चलें चांद पर
हम धरती से उकताए उदार
अनुरागी पीयूषी मन
चलें गगनचुंबी विश्वास लिए
चलो चांद पर चलें”
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