आज का यह डिजिटल दौर आसमान में उगता हुआ सूरज है, जिसकी रौशनी से मानों भाई-बहनों के बीच प्यार भरे पल और विश्वास सूरजमुखी की तरह खिल उठते हैं. राखी या रक्षाबंधन ऐसे खूबसूरत संबंध का प्रतीक है जिसमें जीवन के सारे बंधन खुलकर सांसें लेते हैं. वह युग अब कहां रहा, जब केवल बहनें हीं भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध, उन पर निर्भर हो जाती थीं. अब भाई -बहन एकसाथ विश्वास की डोर से जुड़ते जा रहें. यह एक ऐसा परिवर्तन है, जिसमें परिवार की भूमिका अहम है कि वह ऐसे समाज का निर्माण करे, जहां कोई भेदभाव न हो और भाई-बहन समानता की डोर से बंधे रहें.
ऐतिहासिक क्षण जो रक्षाबंधन के मूल्यों के साक्षी रहें हैं
भारतीय संस्कृति और परम्पराओं में ऐसे कई ऐतिहासिक क्षण हैं जो रक्षाबंधन के मूल्यों के साक्षी हैं. कहते हैं देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने वृत्तसुर से युद्ध करने जाने से पहले उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था. यधपि वे भाई-बहन नहीं थें, पर यहां रक्षा का भाव सर्वोपरि था.
महाभारत में याज्ञसेनी ( द्रौपदी) के भगवान श्रीकृष्ण को राखी बांधने का भी प्रसंग है. श्रीकृष्ण द्रौपदी को सखा भाव और बहन की तरह मानते थें. यह प्रेम तब और बढ़ गया, जब श्रीकृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से गलती से कट गई और खून बहने लगा. यह देख तुरंत हीं द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनके घाव पर बांध दिया. इस प्रेम से श्रीकृष्ण ने उस टुकड़े को हीं पवित्र धागा मान लिया. और जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण कर, उसे अपमानित करना चाहा तो स्वयं श्रीकृष्ण ने प्रकट हो, द्रौपदी की रक्षा की. यह रक्षाबंधन के बंधन की पवित्रता हीं तो थी. एक सखा के अपनी सखा के प्रति भाई-बहन सा प्रेम का एहसास.
मध्यकालीन युग में भी रानी कर्णावती, जो चितौड़ की विधवा शासक थीं, ने हुमायूं को राखी भेजी थी. वह गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और प्रजा की रक्षा चाहतीं थीं. हुमायूं ने उनकी रक्षा भी की.
अब बस एक क्लिक पर बाज़ार सामने आ जाता है
भाई- बहनों के बीच खट्टे- मीठे नोंक- झोंक परिवार के लिए भी सुखद पल होतें हैं. इन्हें कभी यादों में, तो कभी तस्वीरों में भी हम कैद कर रखते हैं. बचपन से हीं ये उमंगो से भरे दिन, युवा होते हुए खुशियों से लदे होते, वृद्ध होने तक जीवन की ख्वाहिशों से परे ऐसे बंधन होते हैं जिसमें दरार की संभावना भी नहीं होती. भले कभी रिश्तों में खटास आ भी जाए, तो भी साथ मिलकर हल निकालना भी यह बंधन सीखाता है.
आज डिजिटल क्रांति से दूरियां न के बराबर हैं और यह तकनीक का कमाल हीं है कि प्यार की खुश्बू भाईयों की कलाई पर बंधी राखियों से आती हैं. आज एक क्लिक पर वेबसाईट में सजी राखियां उपहार सहित सामने आ जाती हैं और बस खरीदने मात्र से वे कहीं भी भेजी जा सकतीं हैं.
एक ज़माना था जब बहनें बाज़ार की चमक-धमक में डूबकर राखियां खरीदतीं थीं. फिर प्यार से चिट्ठी लिखकर लिफ़ाफ़े में डाली जातीं और साथ में डायरी के पिछले पन्ने फाड़कर उसमें रोली-चावल भर पोस्ट ऑफिस में डाल आतीं. डाक से आई राखी कलाई पर बांध, रोली-चावल का तिलक लगा, बाज़ार से आई मिठाई से मुंह मीठा करते फोटो ली जाती ताकि बहन को दिखाई जा सके. पर कलाई के रंगीन धागे से जहां खुशी होती तो वहीं कभी उदासी भी घेर लेती. लेकिन तकनीक की गति ने समय को इतना बदल दिया कि मात्र विडियो कॉल पर एक-दूसरे को देख, मानों सबकुछ मिल जाता है.
अगर धरती पर कोई बंधन सुंदर है तो वह रक्षाबंधन हीं है
वह बीता ज़माना भी अनमोल था, प्रेम से भरा था, बंधन भी निस्वार्थ था और संजोकर रखने का था. लेकिन आज के समय में भी प्रेम कम नहीं है. इस बंधन की नींव में परिवार और समाज की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. आज भाई -बहनों में एक- दूसरे की बातों को समझना, उनके बुरे वक़्त में पिलर्स की तरह खड़े रहना और एक-दूसरे से सीखना हीं रक्षाबंधन का आधार है.
रक्षाबंधन केवल उत्सव नहीं है. यह एक-दूसरे की निजता में दखल भी नहीं है. इस त्यौहार का महत्व भाई- बहनों में भरोसे का है. आज लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के कंधे से कंधा मिलाकर कदम बढ़ा रहीं. यह केवल समाज में लड़कियों की हिस्सेदारी का सवाल नहीं है. यह जिम्मेदारी सौंपने का वक़्त है. हर निर्णय में उनके फैसले और विचार का स्वागत करना समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए जरूरी है. इस धरती पर यह बंधन सुंदर है. रक्षाबंधन समाज के प्रांगण में जलता हुआ दिए से वह प्रकाश है, जिससे प्रेम, ख़्वाब और विश्वास रौशन होतें हैं.
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