हिंदुओं की पुरानी परंपरा है, रंगोली बनाने की. कोई भी पर्व-त्योहार हो या कोई मंगल कार्य लोग घर में रंगोली बनाते हैं. इस परंपरा को जिंदा रखने के लिए स्कूल और कॉलेजों में भी रंगोली बनाने की प्रतियोगिता आयोजित (Rangoli Competition In Schools And Colleges) की जाती है. वहीं बात करें हमारे पर्व-त्योहार की तो चाहे महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) हो, लगभग पूरे भारत में मनाया जाने वाला दीपावली (Diwali) या केरल में मनाया जाने वाला ओणम (Onam), रंगोली भारत के हर घर में सजती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंगोली का इतिहास कितना पुराना है? यदि नहीं तो हम आपको बताएंगे. इससे पहले देखते हैं गणेश चतुर्थी पर बनाई जाने वाली कुछ यूनिक डिजाइन की रंगोली (Rangoli For Ganesh Chaturthi).
Ganesh Chaturthi Special: बप्पा को घर लाने से पहले बनाएं ये रंगोली डिजाइन
गणेश चतुर्थी करीब है. ऐसे में आपने घर की साफ-सफाई तो कर ली होगी. साथ ही सजावट का काम भी पूरा कर लिया होगा. लेकिन अभी तक सोच नहीं पाए हैं कि इस बार कौन सी रंगोली डिजाइन (Rangoli Designs) बनाएं. चिंता मत करिए.

हम आपको आज बताएंगे बेहतरीन गणेश चतुर्थी स्पेशल रंगोली डिजाइन (Ganesh Chaturthi Special Rangoli Design). इस गणेश चतुर्थी आप स्वास्तिक वाली रंगोली बना सकते हैं. यह बेहद आसान होता है. साथ ही आप गणेश जी के मूरत वाली रंगोली भी बना सकते हैं.
जानते हैं भारत में रंगोली का इतिहास
कहा जाता है कि जब भगवान राम लंका पर जीत हासिल कर के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तब अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत में पूरे अयोध्या की साफ-सफाई की थी. इतना ही नहीं हर घर को सजाया गया था और सभी घर के आंगन और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई गई थी. इस तरह हर साल दीपावली (Rangoli For Deepawali) के मौके पर रंगोली बनाने की परंपरा शुरू हुई.
मोहन जोदड़ो और हड़प्पा में भी मिले रंगोली के अंश
यही नहीं भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) ने भी इस बात की पुष्टि की है कि भारत के इतिहास में रंगोली का अंश विद्यमान था. बता दें, रंगोली का इतिहास मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा है. पुरातत्व विभाग के अनुसार इन दोनों सभ्यताओं में अल्पना के चिन्ह मिले हैं. यह चिन्ह रंगोली से काफी मिलते जुलते पाए गए.
केरल में ओनम पर बनाई जाने वाली रंगोली कैसे अलग होती है?
ऐसे तो भारत के विभिन्न राज्यों में पर्व के मौके पर रंगोली बनाई जाती है. लेकिन उत्तर भारत और दक्षिण भारत में बनाई जाने वाली रंगोली एक दूसरे से बहुत अलग है. केरल में ओणम के मौके पर जो रंगोली (Kerala’s Rangoli) बनाई जाती है उसमें फूलों का उपयोग होता है. इसे ‘पूकलम’ कहते हैं. इस रंगोली में कुछ खास तरह के फूलों का इस्तेमाल किया जाता है.

बिहार के मिथिला में बनाई जाने वाली रंगोली में क्या है खास?
बिहार (Bihari Culture) भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपने सभ्यता और संस्कृति को लेकर हमेशा लोगों के दिलों में एक खास जगह बना लेता है. यहां की रंगोली (Bihari Rangoli) भी काफी दिलचस्प है. बिहार का एक इलाका है मिथिला, जिसका नाम आपने कई बार सुना होगा. यहां पर रंगोली को ‘अरिपन’ (Aripan) कहा जाता है. इसे पर्व-त्योहार के अलावा किसी भी शुभ कार्य जैसे कि मुंडन, कर्ण छेदन, जनेऊ संस्कार, विवाह आदि के मौके पर बनाया जाता है.

यहां आपको बताते चलें कि चावल के आटे में पानी मिलाकर अरिपन (Aripan) बनाया जाता है और इसमें रंग भरने के लिए हल्दी और सिंदूर का प्रयोग किया जाता है. इस तरह की रंगोली का जिक्र पुस्तकों में भी मिलता है.
जानते हैं रंगोली के अलग-अलग नाम
फिल्म और सोशल मीडिया ने तो ‘रंगोली’ के इस नाम को चर्चा में ला दिया. साथ ही कहें तो यूनिवर्सली रंगोली नाम ही जमीन पर बनाई जाने वाली इस कला की पहचान बन गई. लेकिन इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. जी हां, भारत के राज्यों में इसे लोग अलग-अलग नाम से जानते हैं.
बात करें दक्षिण भारत की तो तमिलनाडु में रंगोली को ‘कोलम’ कहा जाता है. वहीं केरल में इसे ‘पूकलम’ के नाम से जानते हैं. इधर आंध्र प्रदेश में मुग्गू, मध्य प्रदेश में चौक पूजन और ओड़िशा में ओसा कहा जाता है. राजस्थान में रंगोली को ‘मांडना’ कहते हैं तो गुजरात में ‘साथिया’. पश्चिम बंगाल में रंगोली को ‘अल्पना’ कहते हैं और बिहार में ‘अरिपाना’ या ‘अरिपन’. महाराष्ट्र में इसे रंगोली ही कहा जाता है.
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