अंगुरी में डंसले बिया नगिनिया रे, ए ननदी, दियरा जरा द
दियरा जरा द, अपना भईया के बोला द
पोरे-पोरे उठेला लहरिया रे, ए ननदी, अपना भइया के बुला द,
अंगुरी में डंसले बिया…
बिहार-यूपी की बोली भोजपुरी और भोजपुरी गाने व फिल्मों को चर्चित करने वाला राज्य बिहार है. जब भी भोजपुरी गानों की बात आती है तो हमेशा ही जहन में फूहड़ता, अश्लीलता जैसे शब्द आते हैं. आए भी क्यों न जब किसी गीत में सिर्फ महिला के वस्त्र, उसके शरीर आदि के बारे में द्विअर्थीय शब्द शामिल हो. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था. पहले भोजपुरी में अच्छे गाने लिखे भी जाते थे और गाए भी. बहुत कम लोग जानते हैं कि भोजपुरी का इतिहास कितना धनी रहा है. आज हम ऐसे एक गीतकार के बारे में जानेंगे जिनके गीतों के धुन न सिर्फ भारत बल्कि फिजी, मारिशस, सूरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिदाद, गुयाना तक में मशहूर हैं. हम बात कर रहे हैं पूर्वी के बेताज बादशाह महेंद्र मिश्र की. वही महेंद्र मिश्र जिन्होंने आजादी के लड़ाई में भी बड़ा सहयोग किया था नोट छापकर. इतना सब पढ़कर आपके भी मन में महेंद्र मिश्र के बारे में जानने की उत्सुकता जग गई होगी.
एक साथ कई भाषाओं के जानकार थे महेंद्र मिश्र
महेंद्र मिश्र का जन्म बिहार के छपरा जिले के गांव काहीं मिश्रवलिया में 16 मार्च 1886 को हुआ था. उनके पिता का नाम शिवशंकर मिश्र और माता का नाम गायत्री देवी है. उनकी पत्नी का नाम परेखा देवी है. महेंद्र मिश्र के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने किसी ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय से डिग्री तो नहीं प्राप्त की थी. लेकिन एक साथ कई भाषाओं के जानकार थे. मिश्र संस्कृत, उर्दू, फारसी, भोजपुरी, बांग्ला, अवधि भाषा में पकड़ रखते थे. यही नहीं अध्यात्म में भी उनकी काफी रूचि थी.
जब जाली नोट छापा करते थे महेंद्र मिश्र
कहते हैं महेंद्र मिश्र नकली नोट भी छापा करते थे. उनके इसी काम से उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में सहयोग भी किया और इसी कारण जेल भी जाना पड़ा. दरअसल, महेंद्र मिश्र क्रांतिकारियों की मदद के लिए नकली नोट छापा करते थे. अंग्रेजों को इसकी भनक लगी और वो पकड़े गए. उन्हें 7 साल की जेल की सजा हुई थी. हालांकि, उनके स्वभाव के कारण उनकी सजा कम हो गई थी. महेंद्र मिश्र ने जेल से भी लिखना बंद नहीं किया था. उन्होंने अपनी रचना ‘अपूर्व रामायण’ जेल से ही लिखा था.
महेंद्र मिश्र की लिखी कुछ गीत
कहा जाता है कि महेंद्र मिश्र ने कभी भी दूसरों के द्वारा लिखी हुई गीत नहीं गाया. वे हमेशा ही अपने द्वारा रचित गीतों को ही गाया करते थे. आज भी भोजपुरी गायक महेंद्र मिश्र का नाम बड़े सम्मान से लेते हैं. कहा जाता है कि महेंद्र मिश्र ने छपरा, मुजफ्फरपुर, पटना, कलकता और पश्चिम में बनारस, ग्वालियर और झांसी तक के गायकों के पास जाकर गीत गाया है. उन्होंने अपने जीवनकाल में ‘अंगुली में डसले बिया नगीनिया हो सइयां के बुलाई द’, ‘आधी-आधी रतिया के’, ‘कुछ दिन नइहर में’, ‘सखी हो प्रेम नगरिया’ आदि कई गीतों की रचना की है. महेंद्र मिश्र आम लोगों की पीड़ा या भाव आदि पर गीत लिखा करतेे थे. वो न सिर्फ गीत लिखते और गाते थे बल्कि तबला- हारमोनियम जैसे वाद्य-यंत्र भी बजाया करते थे.