पुहुप, कहाँ जा रही हो?
संघर्ष पथ पर..
अच्छा ठीक है,
तो सुनो, समय की सवारी में बैठ जाना ।
क्योंकि मंजिलपुर जाने में समय लगेगा।
सुनो पुहुप, तुम थोड़ा संभाल कर,
समझदारी के साथ जाना।
क्योंकि संघर्ष पथ पर मिलेगी तुम्हें,
खिल्ली रूपी धूल, जो तुम पर उड़ाई जाएगी।
तुम्हें मिलेगा आलोचना का कीचड़,
जो तुमपर उछाला भी जाएगा।
तुम्हें मिलेगी हतोत्साहित आंटी, जो तुम्हे कहेंगी।
“ए पुहुप, तुम काहे अपना टाइम बर्बाद कर रही हो।
कुछो ना होगा, ई सब मे, मंजिलपुर फ़ंजिल पुर में,
डुगडुगी बजाना बाद में,
” तुम्हे मिलेंगे मज़ाक अंकल,
जो तुम पर हँसेंगे की ई चली हैं, मंजिलपुर,
हमसे तो हुआ नही, तो ई कर लिहे।
पर तुम घबराना मत,
तुम्हें मिलेंगे ईर्ष्या चाचा, जो नाक भौ सिकोड़ेंगे, और कहेंगे।
हमारी बिटिया से कौनो ज्यादा तेज़ हैं, ई पूहुपवा से कुछो ना होइ।
वही पर तुम्हें मिलेंगी आशा दीदी,
जो तुम्हें सही रास्ता, पता बताएंगी,
तुम्हें हौंसला मैडम से मिलवायेगी,
तुम्हें मेहनत सर् से ट्रेनिंग भी दिलवाएंगी।
सुनो पुहुप, तुम्हें अकेलेपन की गली से भी कभी दाई ओर तो कभी बाई तरफ मुड़ना होगा।
तुम्हें हो सकता तनावनगर से भी गुज़रना होगा।
पर पुहुप, तुम जिस भी दिन पहुँच जाओगी,
मंजिलपुर, उस दिन हतोत्साहित आंटी सबसे पहले उत्साहित होकर कहेंगीं।
“हम तो जानते थे, बिटिया कोई अच्छा ही काम कर रही हैं।”
मज़ाक अंकल भी कहेंगे,” शाबाश पुहुप”
ईर्ष्या चाचा भी फिर गर्व से रिश्ता जोड़ेंगे तुमसे
और कहेंगे “अरे ई पूहुपवा हमरो त बेटी ही भईल ।”
आलोचना के कीचड़ में, तुम्हारी प्रशन्सा का कमल खिलेगा।
खिल्ली रूपी धूल में तुम्हारी सफलता का चन्दन मिलेगा।
तो पुहुप तुम आराम से संघर्ष पथ पर जाओ,
समय की सवारी में सवार होकर,
और सिर्फ आशा दीदी की बात सुनो,
और आगे बढ़ो।
क्योकि सफलता के बाद,
तुम भी बच्चन की मधुशाला की तरह,
मुग़ल -ए-आज़म की मधुबाला की तरह,
सबकी फ़ेवरेट हो जाओगी।