परिचय है हमारा, आदिशक्ति देवी के स्वरूप से,
चलिए मिलते हैं। माँ दुर्गा के नवरूप से।
पर्वतराज हिमालय की थी, वो प्यारी पुत्री
माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप है, देवी शैलपुत्री।
दाएं हाथ मे त्रिशूल, बाएं हाथ मे कमल
माँ सती नाम इनका, हर समस्या का कर देती हल।
शैलपुत्री बनी शिव शक्ति, प्रिय इन्हें पीले वस्त्र प्रत्येक रंग-रूप में।
चलिए मिलते हैं, माँ दुर्गा के नवरूप से।
तपस्वी रूप में जिनकी गाथा हैं विचारिणी,
माँ दुर्गा का दूसरा रूप है, देवी ब्रह्मचारिणी
गुड़हल और कमल के फूल, माँ को विशेष भाए।
तपस्या और सदाचार का महत्व माँ समझाए
हम धैर्य धारण सीखते हैं, माँ के इस स्वरूप से,
चलिए मिलते हैं, माँ दुर्गा के नवरूप से
माँ पार्वती का वो विवाहित अवतार हैं।
देवी के मस्तक पर सुशोभित अर्धचंद्र जैसे कोई घण्टा।
माँ का तीसरा स्वरूप है, देवी चन्द्रघण्टा।
सफेद कमल ,पीला गुलाब माता को हर्षाते हैं।
इनके उपासक पराक्रमी और बलवान हो जाते हैं।
माँ ने महिषासुर का वध किया, चन्द्रघण्टा के ही स्वरूप में
चलिए मिलते हैं ,माँ दुर्गा के नवरूप से।
एक बार की बात है, जब कही नही संसार था।
कोई नही इंसान था, चारों तरफ अंधकार था।
तब उस देवी ने निर्माण किया, समस्त इस ब्रह्मांड का
माँ का चौथा स्वरूप है, देवी कुष्मांडा।
माता के कुल आठ हाथ हैं,
कमण्डल, धनुष, बाण, कमल
कलश, चक्र, गदा क्रमशः साथ हैं।
माँ करती हैं जाप माला, इसी स्वरूप में
चलिए मिलते हैं माँ दुर्गा के नवरूप से
प्रेम जताना इनको आता
कुमार कार्तिकेय की हैं, ये माता
माँ का पांचवा स्वरूप है, देवी स्कंदमाता
पुत्र कार्तिकेय को, युद्ध हेतू योग्य बनाया
माँ ने ही कार्तिक के हाथों, तारकासुर का अंत कराया।
चमेली और पीले फूल चाहे, माँ इसी स्वरूप से
चलिए मिलते हैं माँ दुर्गा के नवरूप से,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने माँ की महिमा हैं, बखानी।
माँ का छठा रूप है, देवी कात्यायनी।।
ऋषी कात्यायन का तप सफल किया
माँ ने कात्यायनी के रूप में, घर कात्यायन के जन्म लिया।
सफलता और यश का प्रतीक होती हैं, माँ, इस स्वरूप में
चलिए मिलते हैं, माँ दुर्गा के नवरूप से।
जिनके कारण उत्पन्न हुए हैं,
दिवस और रात्रि
माँ का सातवां स्वरूप है, देवी कालरात्रि।
दानव -दल का संहार किया,
देवताओ का उद्धार किया,
शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज का वध किया,
माँ ने इसी स्वरूप में,
चलिए मिलते हैं , माँ दुर्गा के नवरूप से।
धन और समृद्धि में होती हैं, बढ़ोत्तरी,
शिव शंकर की अर्धांगिनी हैं, देवी गौरी
माँ का आठवां स्वरूप है, देवी महागौरी।
गौर वर्ण, चार भुजाएं,
लाल चुनरी माँ के मन भाए।
स्नेहमयी, करुणामयी और शांत हैं, माँ इसी स्वरूप में,
चलिए मिलते हैं, माँ दुर्गा के नवरूप से,
अलौकिक सिद्धियों व शक्तियों की है ये दात्री।
माँ का नवा व अंतिम स्वरूप है, देवी सिद्धिदात्री,
लाल गुड़हल, माँ को भाए,
हलवा, चना और पूरी माँ को हर्षाये
छोटी छोटी कन्याएं, माँ का ही स्वरूप हैं।
घर घर में मौजूद, हर इक औरत देवी दुर्गा का रूप हैं।
वंदना करता हैं, जहान, नवरात्र के स्वरूप का।
नमन करती हैं ममता,आदिशक्ति के हर रूप का।
आदिशक्ति के हर रूप का।।