हिंदू धर्म के अनुसार जीवन में कुल 16 संस्कार बताए गए हैं, जो मानव के गर्भाशय समय से लेकर वृद्धावस्था तक होते हैं. इसमें से एक है जनेऊ संस्कार. जनेऊ बेहद पवित्र संस्कार माना जाता है. इस धर्म में जनेऊ की बड़ी मान्यता है. आज हम आपको बताएंगे कि क्यों हिंदू धर्म में जनेऊ पहना जाता है और इसकी क्या खासियत होती है.
मालूम हो कि जनेऊ संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार और उपनयन संस्कार भी कहा जाता है. यह हिंदू धर्म के मुख्य 16 संस्कारों में से एक है. जनेऊ होने के बाद बालक को वेद पढ़ने का अधिकार प्राप्त हो जाता है. भारत में ऐसे कई मंदिर हैं जहां निशुल्क जनेऊ संस्कार कराया जाता है. ऐसा ही एक मंदिर है श्रीमद् भागवत मंदिरम, जहां 9 वर्षों से हिंदू बच्चों का निशुल्क जनेऊ संस्कार कराया जा रहा है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष यहां 101 हिंदू बच्चों का संस्कार कराया गया है.
कब कराते हैं जनेऊ संस्कार?
वैसे तो आप जनेऊ संस्कार कभी भी करा सकते हैं. लेकिन शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण कुल के बालक को 7 वर्ष, क्षत्रिय को 16 वर्ष और वैश्य कुल के बच्चों को 12-14 वर्ष की उम्र में संस्कार करा लेना चाहिए. विवाहित व्यक्ति भी यह संस्कार कुछ
जनेऊ क्या है?
आपने देखा होगा कि बहुत सारे लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं. इस धागे को जनेऊ कहते हैं. जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है. जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है. यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है. इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे.
जनेऊ पहनने के साथ पालन करने होते हैं कुछ नियम
जनेऊ पहनने वालों को कुछ नियम का कड़ाई से पालन करना पड़ता है. ये नियम कुछ इस प्रकार हैं-
- जनेऊ को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथों को धोकर ही इसे कान से उतारना चाहिए
- यदि जनेऊ का कोई धागा टूटा हो तो इसे बदल लेना चाहिए
- इसे पहनने के बाद तभी उतारना चाहिए जब आप नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं इसे गर्दन मेें घुमाते हुए ही धो लिया जाता है
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