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आपने ‘रफ़्ता रफ़्ता वो मिरी हस्ती का सामाँ हो गए’ (Rafta Rafta Song) गाना तो सुना ही होगा. लेकिन क्या आपको पता है यह गाना एक ग़ज़ल पर आधारित है जिसे तस्लीम फ़ाज़ली (Tasleem Fazli) ने लिखा था. आइए, पढ़ते हैं पूरी ग़ज़ल-
रफ़्ता रफ़्ता वो मिरी हस्ती का सामाँ हो गए
पहले जाँ फिर जान-ए-जाँ फिर जान-ए-जानाँ हो गए
दिन-ब-दिन बढ़ती गईं उस हुस्न की रानाइयाँ
पहले गुल फिर गुल-बदन फिर गुल-बदामाँ हो गए
आप तो नज़दीक से नज़दीक-तर आते गए
पहले दिल फिर दिल-रुबा फिर दिल के मेहमाँ हो गए
प्यार जब हद से बढ़ा सारे तकल्लुफ़ मिट गए
आप से फिर तुम हुए फिर तू का उनवाँ हो गए
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तस्लीम फ़ाज़ली की ग़ज़ल ‘रफ़्ता रफ़्ता वो मिरी हस्ती का सामाँ हो गए’
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