बिहार की धरती पर कई ऐतिहासिक धरोहर व धार्मिक स्थल हैं. ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है बिहार के गोपालगंज जिला स्थित थावे मंदिर (Gopalganj Thave Mandir). यह मंदिर उत्तर बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. यहां दिल्ली, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि कई अन्य राज्यों से श्रद्धालु आते हैं. ऐसे तो इस थावे मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. लेकिन श्रावण और शारदीय नवरात्र में यहां की रौनक देखते ही बनती है.
क्या है मंदिर का इतिहास?
वहीं जब हमने थावे मंदिर (Thave Mandir) के पुजारी नारायण पांडे से बात की तो उन्होंने हमें इस मंदिर से जुड़ी प्रचलित कहानी बताई. पुजारी ने कहा कि बहुत साल पहले चेरो वंश का राज था और उसके राजा थे मनन सिंह. एक समय ऐसा आया जब मनन सिंह के शासन में पूरे इलाके में भूखमरी आ गई. लोग दाने-दाने के लिए तरस गए. लेकिन राजा कुछ न कर सके. वहीं दूसरी तरफ राजा के दरबार में ही रहसू भगत नाम का दास था जिसके खेत में भूखमरी के दौरान भी खूब फसल होते थे. राजा ने रहसू भगत से इसका राज जानना चाहा. लेकिन रहसू भगत ने इंकार कर दिया. उसका कहना था कि अगर वो बता देगा तो सब बर्बाद हो जाएगा.
पुजारी ने आगे बताया कि लेकिन राजा के बार-बार जिद्द करने पर रहसू भगत ने दुर्गा माता को बुलाया. कहा जाता है कि माता कलकत्ता से चलकर पटना होते हुए यहां (थावे) प्रकट हुईं. बता दें, नारायण पांडे इस मंदिर में 1993 से पुजा करा रहे हैं. इससे पहले उनके परिवार से भी कई लोग यहां पर पुजा कराते थे.
वहीं आम लोगों का भी कुछ ऐसा ही कहना है. साथ ही लोग कहते हैं कि माता रहसू भगत का सिर फाड़कर प्रकट हुई थी. इसलिए इस मंदिर से कुछ ही दूर पर रहसू भगत का भी मंदिर है. लोग वहां भी दर्शन के लिए जाते हैं.
कौन थे रहसू भगत?
आम लोगों का कहना है कि बहुत साल पहले एक रहसू भगत (Rahsu Bhagat Story) नाम का दास हुआ करता था. यह दलित किसान ईमानदार था और पूरी निष्ठा से अपना काम करता था. साथ ही यह दुर्गा माता का बहुत बड़ा भक्त था. प्रतिदिन माता की पूजा करता था और अपने खेत से जो भी मुनाफा होता था उसका एक हिस्सा दुर्गा माता को चढ़ाता था. इस तरह माता रहसू भगत सेे बहुत प्रसन्न रहती थीं. शायद यही कारण था कि जब इस पूरे इलाके में भूखमरी का मंजर था तब भी रहसू भगत के खेत से काफी फसल हुए. लेकिन एक दिन मनन सिंह जैसे घंमडी राजा को यह सब पता चला. राजा ने अपने घमंड में रहसू से दुर्गा माता को बुलाने की बात कही. रहसू केे मना करने और यह चेतावनी देने पर कि माता यहां प्रकट हुई तो प्रलय आ जाएगा राजा नहीं माने. फिर रहसू भगत (Rahsu Bhagat) ने हार कर माता को बुलाया और जैसा कि लोग कहते हैं कि माता के आते ही जोर-जोर से बिजली चमकने लगी, आंधी तूफान शुरू हो गया.

पौराणिक कथा के अनुसार, रहसू भगत (Rahsu Bhagat) के सिर को फाड़ कर उसमें से देवी मां का कंगन और हाथ का हिस्सा बाहर निकला. रहसू भगत को मुक्ति मिल गई. इस तरह लोगों ने इसे चमत्कार मानकर थावे के जंगल में मंदिर की स्थापना कर दी और तब से आजतक यहां ढेरों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.
मंदिर की दूरी और कैसे जाएं?
सिवान (Siwan News) मुख्यालय से थावे मंदिर की दूरी 9 किलोमीटर की है. हालांकि, गोपालगंज से यह 6 किमी की दूरी पर स्थित है. स्थानीय लोगों केे लिए तो यहां आना आसान है. बाकी अन्य लोग सिवान स्टेशन पहुंचने के बाद यहां से गोपालगंज (Gopalganj News) के लिए लोकल बस लें. इसके बाद गोपालगंज पहुंचकर वहां से ई-रिक्शा या ऑटो लेकर आप थावे मंदिर पहुंच सकते हैं.
Thave Mandir: श्रावण और नवरात्रि में होती है विशेष पूजा
नवरात्रि के समय गोपालगंज जिला प्रशासन (Gopalganj) की ओर से थावे मंदिर में थावे महोत्सव का आयोजन किया जाता है. इस महोत्सव के दौरान पुलिस और प्रशासन चौकन्ना रहती है. यही नहीं श्रद्धालुओं की सुविधा के लिहाज से टॉयलेट आदि का भी निर्माण किया जाता है. सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं. नवरात्रि के दौरान मंदिर के प्रांगण में कंट्रोल रूम की स्थापना की जाती है. नवरात्रि का समय ऐसा होता है जब यहां के दुकानदार के लिए रोजगार के अवसर खुल जाते हैं. आम दिनों पर तो सिर्फ सोमवार और शुक्रवार के दिन इन दुकानदारों की कमाई होती है लेकिन नवरात्रि ऐसा समय है जब 10 दिन इन दुकानदारों की दुकानों पर भीड़ लगी रहती है.
थावे मंदिर और मशहूर पेडुकिया का प्रसाद
पेडुकिया, थावे मां का प्रमुख प्रसाद है. ऐसे तो बढ़ती मांग के साथ यहां पर पेडुकिया के कई दुकानें हैं. लेकिन अगर बात करें सबसे पुराने और प्रसिद्ध दुकान की तो वो है ‘गौरीशंकर मिष्ठान भंडार’ . यह दुकान कई साल पुरानी है. यहां पर बिकने वाला पेडुकिया इसलिए भी खास है क्योंकि इसे शुद्ध घी बनाया जाता है. इस पेडुकिया में इस्तेमाल होने वाला घी और खोया बिहार के खगड़िया जिले से मंगाया जाता है. दुकानदार ने एक बिहारी न्यूज को बताया कि एक बार में लोग एक किलो पेडुकिया से लेकर 25 किलो तक भी ले जाते हैं.

कई बार लोगों के घर में जलसा या कोई आयोजन होता है तो इसे बड़े-बडे ऑर्डर भी आते हैं. इस पेडुकिया का दाम है 15 रुपये प्रति पेडुकिया और 200 रुपये प्रति किलो (यह रेट खबर पब्लिश होने के दिन तक का है).
मंदिर के प्रांगणन की भव्यता और व्यवस्था
मंदिर का प्रांगणन बहुत बड़ा है. श्रद्घालुओं की एक बड़ी भीड़ इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आती है. आसपास कई सारी दुकानें हैं. इनमें मिठाइयों की दुकानें हैं, प्रसाद की दुकानें हैं, दुर्गा माता को चढ़ाने वाले चुनरी की दुकानें हैं, बच्चों के लिए खिलौने की दुकानें हैं, बर्तन आदि की दुकानें हैं. बर्तन दुकानदार रानू ने हमें बताया कि अभी जिस स्थान पर थावे का मंदिर है, वहां बहुत साल पहले सिर्फ जंगल था. 200 साल पहले से ही इस स्थान पर बर्तन, मसाला के व्यसाय ज्यादा होते थे. थावे के इस इलाके में दुकानें कम थी. शुरू से ही बर्तन के व्यवसाय चलते आ रहे हैं.
रानू ने एक बिहारी न्यूज को बताया कि सोमवार शुक्रवार को मंदिर के प्रांगण में मेला लगता है. इस तरह लोग अपनी दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें भी इन्हीं दुकानों से ले जाते हैं. रानू ने आगे कहा कि आज भी यहां कई ऐसी चीजें मिल जाएंगी जो आपको बाहर के बाज़ार में नहीं मिलेंगी. रानू की दुकान 70 साल पुरानी है और वह मूल रूप से इलाहबाद (उत्तर प्रदेश) के निवासी हैं.
बताते चलें कि मंदिर के प्रांगण में प्रबंधक और प्रशासन की ओर से सभी तरह की व्यवस्था है. इस मंदिर मेें दूर से आ रहे दर्शनार्थियों के लिए स्नान की व्यवस्था, बैठने के लिए वेटिंग लॉउंज आदि है. वहीं इस मंदिर में सालों से शादी, जनेऊ, मुंडन और अन्य शुभ कार्य होते हैं. वहीं प्रशासन की ओर से भीड़-भाड़ को देखते हुए जिलाधिकारी का संपर्क नंबर व पुलिस हेलपलाइन नंबर उपलब्ध कराया गया है.
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