पर्यावरण को बचाने के लिए बिहार सरकार ने प्लास्टिक पर बैन लगा रखा है. ऐसे में विकल्प के तौर पर बाजार में अन्य प्रोडक्ट्स आ रहे हैं. ऐसा ही एक प्रोडक्ट है जूट से बना थैला. बता दें प्लास्टिक बैन लगने से जूट के थैलों की खूब मांग हो रही है. ऐसे में तेजी से जूट बनाने का काम किया जा रहा है और इसमें गया जिले की महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहीं हैं.
महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही है नाबार्ड
नाबार्ड की विभिन्न संस्थाओं में से एक स्माइल टुगेदर फाउंडेशन महिलाओं को सशक्त बनाने में जुटी है. इस फाउंडेशन के माध्यम से 30 महिलाओं को 15 दिवसीय जूट प्रोडक्ट बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. महिलाएं प्रशिक्षण लेकर जूट से बैग, लैपटॉप बैग, मोबाइल बैग, पानी बोतल बैग, फाइल फोल्डर आदि का निर्माण कर रही हैं. प्रशिक्षण लेने के बाद यह महिलाएं खुद का काम शुरू कर सकती हैं. यही नहीं नाबार्ड की ओर से महिलाओं को खुद का काम शुरू करने के लिए लोन भी उपलब्ध कराया जाएगा.
बिहार के गया जिले में नाबार्ड विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण इलाके की महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए प्रशिक्षण दिला रही है. इससे भविष्य में महिलाएं प्रशिक्षण लेकर खुद का रोजगार शुरू कर सकती हैं. बता दें कि जूट प्रोडक्ट की मार्केटिंग के लिए बोधगया एक बेहतर जगह है. यहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटक जूट के बने प्रोडक्ट खरीदते हैं.

जूट के बने बैग से कोई नुकसान नहीं
जूट से बने बैग की एक खास बात यह भी है कि इससे प्रकृति को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. साथ ही इसे बनाने में कम खर्च आता है. एक जूट का बैग बनाने में कुल लागत 60-70 रुपये है. जबकि इसका बाजार मूल्य लगभग 100-150 रुपये है. इस तरह अगर महिलाएं एक दिन में 10 बैग बनाती हैं तो उन्हें रोजाना 500-800 रुपये की बचत होगी. इसके अलावा, महिलाओं के द्वारा बनाए गए वस्तु को ऑनलाइन बाजार से भी जोड़ा जा सकता है.
जूट बैग्स के फायदे:
- इससे पर्यावरण कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा
- महिलाओं को रोजगार का विकल्प मिलेगा जिससे राज्य आत्मनिर्भर बनेगा
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